आज ( 5 नवंबर 2024) हमीदिया गर्ल्स डिग्री कॉलेज के प्राचीन इतिहास, संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग, बी.वोक.प्रोग्राम और फ़ारसी विभाग के स्नातक छात्राओं को डा0 नसरीन बेगम, प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के नेतृत्व में कौशाम्बी जनपद स्थित प्रसिद्ध ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक पुरास्थलो – घोसिताराम चैत्य-विहार, अशोक स्तम्भ क्षेत्र, श्येनचिति, राजप्रासाद का शैक्षणिक भ्रमण कराया गया।
कौशाम्बी के प्रारम्भिक इतिहास पर चर्चा करते हुए डा0 नसरीन बेगम ने दल को बताया कि कौशाम्बी का वर्णन ब्राह्मणग्रंथों, उपनिषदों के साथ-साथ रामायण तथा महाभारत में भी मिलता है। पौराणिक परम्परा के अनुसार अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित के बाद पांचवी पीढ़ी के निचक्षु के शासनकाल में जब हस्तिनापुर गंगा की भयंकर बाढ़ में नष्ट हो गया था, तब उसने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया था। बौद्ध ग्रंथ अंगुत्तरनिकाय, महावस्तु तथा जैनग्रंथ भगवतीसूत्र के अनुसार छठी शताब्दी ईसापूर्व में यह कौशाम्बी नगर वत्स महाजनपद की राजधानी था। कौशाम्बी की गणनाबुद्ध कालीन छह प्रमुख नगरों में की जाती है। छठी शताब्दी ईसवीपूर्व में उदयन यहां के शासक थे। बौद्ध परम्परा के अनुसार महात्मा बुद्ध यहां दो बार आये और अपना छठवां और नवां वर्षावास (चतुर्मासा) यहीं व्यतीत किया। जैन ग्रंथों के अनुसार जैन धर्म के छठे तीर्र्थंकर पद्मप्रभु का जन्म कौशाम्बी के पभोषा में हुआ था । यहीं उनके गर्भ, जन्म, तप एवं कैवल्य-ज्ञान कल्याणक संपन्न हुए थे ।
कौशाम्बी के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने आगे बताया कि चौथी सदी से सातवी सदी के मध्य दो चीनी यात्री फाहयान और व्हेनसांग यहां आये और अपने यात्रा वृत्तान्त में कौशाम्बी की तत्कालीन स्थिति का सजीव वर्णन किया। व्हेनसांग के विवरण को आधार बनाते हुए वर्ष 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रथम सर्वेक्षक एलेक्जेंडर कनिंघम ने यहां की यात्रा की थी और अपनी प्रकाशित रिपोर्ट में बताया कि सरकारी अभिलेखों में दर्ज वर्तमान कोसम ईनाम व कोसम खिराज ग्राम ही प्राचीन कौशाम्बी था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो0 जी0आर0 शर्मा ने यहां 1949 से 1965 तक अनवरत उत्खनन कार्य करवाया था।
शैक्षणिक भ्रमण के दौरान डा. नसरीन बेगम ने छात्र-छात्राओं को पुरातात्विक सर्वेक्षण, अंकन व उत्खनन की बारीकियों को समझाते हुए उनको विधिवत प्रशिक्षित किया तथा उनसे पुरातात्विक सर्वेक्षण कार्य भी कराया। पर्शियन विभाग की डॉ. शबाना अज़ीज़ ने विद्यार्थियों को बताया की इस विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रक्खा जाना चाहिए उन्होंने दल का उत्साहवर्द्धन किया तथा विरासत संरक्षण हेतु प्रेरित किया। काॅलेज के प्राचार्यI प्रोफेसर नासेहI उस्मानी ने भारत के गौरवशाली इतिहास व संस्कृति को गहराई से समझने के लिए विद्यालयीय शिक्षा के अतिरिक्त इस तरह के शैक्षिक भ्रमण और प्रशिक्षण कार्यक्रम की आवश्यकता पर बल दिया।