हमीदिया गर्ल्स डिग्री कॉलेज, प्रयागराज ,उत्तर प्रदेश के उर्दू विभाग और इंटरनेशनल यंग उर्दू स्कॉलर एसोसिएशन (आयूसा) उत्तर प्रदेश शाखा के तत्वावधान से चल रहे साप्ताहिक(10.11.2020 से 16.11.2020 तक) कार्यक्रम ‘नवा-ए-उर्दू’ के अंतर्गत चौथे दिन दिनांक 13.11. 2020 को “दौरे हाजिर में ग़ालिब की मानवियत” पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। विशेष वक्ता डॉ रजा हैदर, डायरेक्टर, गालिब इंस्टीट्यूट दिल्ली ने कहा कि ग़ालिब ऐसे शायर हैं जिनकी लोकप्रियता और प्रसिद्धि वर्तमान समय में भी उतनी ही है, जितनी आज से सैकड़ों वर्ष पहले थी। यह यह आज भी दिलचस्पी के साथ पढ़े और कोड किए जाते हैं। ग़ालिब की शायरी मे दुनिया की लगभग सभी समस्याएं मौजूद हैं। यह हमारे जिंदगी के बेहद करीब हैं, यह खास के नहीं बल्कि आवाम के शायर हैं। किसी भी धर्म ,पंथ, मत, विचारधारा के हो, यह हर जगह लोकप्रिय हैं। गंगा- जमुनी संस्कृति इनकी शायरी का आईना है, हर धर्म के चहेते हैं, और सहिष्णुतावादी विचार ग़ालिब को एक महापुरुष बनाते है। आज के नौजवानों के बीच ग़ालिब बतौर आईकॉन है। किसी भी फील्ड का नौजवान हो, वह ग़ालिब को पढ़ने और जानने में जिज्ञासा जरूर रखता है ,और अपनी निजी जिंदगी में कोड करना चाहता है। वर्ल्ड बुक फेयर में सबसे ज्यादा बिकने वाला शेरी मजमुआ मिर्जा ग़ालिब का है। मिर्ज़ा ग़ालिब की लोकप्रियता नौजवानों तक ही नहीं बल्कि समाज के हर तबके तक है। इंसानी जिंदगी की समस्याएं जहां भी आती हैं चाहे वह पार्लिमेंट हो, न्यायालय हो, एकेडमी ,फाइन आर्ट्स हर जगह ग़ालिब को पढ़ा और कोड किया जाता है। दीवान-ए-ग़ालिब का अनुवाद दुनिया की जितनी भी बड़ी-बड़ी भाषाएं हैं लगभग हर भाषा में हुआ है चाहे वह जर्मन हो, इंग्लिश हो , स्पेनिश हो ,लातीनी हो, भारतीय हो। भारतीय भाषाओं में भी बंगला, अवधी, भोजपुरी हर जगह इनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं है। इक़बाल के बाद सबसे ज्यादा निकलने वाली किताब ग़ालिब की ही है ।सबसे ज्यादा ग़ालिब पर लेख भी छपते हैं । इन्हीं विशेषताओं के कारण वर्तमान समय में उनकी प्रसंगिकता बनी हुई है। आयूसा डेनमार्क,से जुड़ी विशेष अतिथि श्रीमती सदफ मिर्जा ने कहा की गालिब पर अमरीकी और अंग्रेजों ने जितना काम किया है, शायद हिंदुस्तान और पाकिस्तान में ना हुआ हो। उनको गालिब़ पर काम करने में भाषा एक बाधा थी, लेकिन उन्होंने इसको पार किया जो कि ग़ालिब की लोकप्रियता को दर्शाता है। ग़ालिब की शायरी को नारीवाद से भी जोड़ने की कोशिश की गई है ,उन्होंने छात्राओं को संदेश दिया की शिक्षा और संस्कार मानसिकता और सोच को विस्तार देता है , समझदारी और विवेक पैदा करता है । उन्होंने कहा कि महिलाओं की दयनीय स्थिति केवल पूर्व में ही नहीं बल्कि पश्चिमी देशों में भी मौजूद है, जिसका कारण पुरुष प्रधान समाज है यहां पर भाषाओं और मुहावरों की रचना पुरुषों के द्वारा किया गया है। हमारी भाषा का संबंध उसी मानसिकता से है, ख़ाचों से है, जिनको तोड़ना, जिन से बाहर निकलना मुश्किल है। औरत सिर्फ शो पीस नहीं, शेर-ओ- शायरी की वस्तु नहीं, बल्कि एक संघर्ष करने वाली खूबसूरत वजूद है, केवल शिक्षा ही औरत को उसका मुकाम दिला सकती है ।अपनी शिक्षा के दायरे को बढ़ाएं सामाजिक, भौगोलिक, भाषाई बाधाओं से ऊपर उठकर काम करें। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर अली अहमद फातमी ने कहा कि ग़ालिब की शायरी में दुनिया की तमाम समस्याएं मौजूद हैं, वह हमारे जिंदगी के करीब भी हैं। गालिब पर किताबें, ड्रामे, फिल्में, गजलें भी बहुत हैं, लेकिन हम उनको किस दृष्टिकोण से देख रहे हैं , यह मुख्य है। गालिब की शायरी की विभिन्नता मे, जिंदगी की कशमकश, बदलाव, चुनौतियों सब पिरोयीं है और उन्होंने इन चुनौतियों को जिस हिम्मत के साथ कबूल किया है वह अत्यधिक प्रभावित करती हैं। गालिब ने उर्दू शायरी को एक रुख़ दिया है, उनकी शायरी में जितने शेड हैं, शायद और कहीं नहीं है। वह एक तरक्की पसंद शायर भी हैं। गालिब सिर्फ 19 वी सदी के शायर नहींहैं, बल्कि वह 20 वीं सदी, 21वीं सदी, और 22 वी सदी के भी शायर हैं। गालिब पर चर्चा तब तक होती रहेगी जब तक इंसानी जिंदगी और समस्याएं रहेंगी, यही ग़ालिब की प्रसंगिकता है।
कॉलेज की प्राचार्या डॉ यूसुफा नफीस ने अतिथियों का स्वागत किया। कॉलेज की प्रबंधक श्रीमती तज़ीन एहसानउल्ला ने कार्यक्रम की सफलता के लिए आशीष दिया। उर्दू विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर श्रीमती नासेहा उस्मानी ने कार्यक्रम का संचालन किया, और उर्दू विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर श्रीमती जरीना बेगम ने धन्यवाद ज्ञापित किया।