हमीदिया गर्ल्स डिग्री कॉलेज, प्रयागराज में दिनांकः 06.09.2024 से 13.09.2024 तक राजभाषा हिन्दी सप्ताह 2024 का अIयोजन किया जा रहा हैI
हिंदी सप्ताह के पहले दिन डॉ. कृपा किंजल्कम, ईश्वर सरन डिग्री कॉलेज का व्याख्यान हुआ। जो हिंदी राष्ट्रभाषा या राजभाषा इस विषय पर हुआI अपने विचार रखते हुए कहा की 14 सितम्बर का दिन प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।संविधान की धारा 343(1) के अनुसार भारतीय संघ की राजभाषा हिन्दी एवं लिपि देवनागरी है।संविधान सभा ने हिन्दी को संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया। इस दिन को अब हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है।
राष्ट्रभाषा, राजभाषा और मातृभाषा में क्या अतंर है इस विषय को स्पष्ट तौर पर समझाते हुए कहा की यद्यपि भारत एक बहुभाषायी देश है किन्तु बहुत लम्बे काल से हिन्दी या उसका कोई स्वरूप इसके बहुत बड़े भाग पर सम्पर्क भाषा के रूप में प्रयुक्त होता था। भक्तिकाल में उत्तर से दक्षिण तक, पूरब से पश्चिम तक अनेक सन्तों ने हिन्दी में अपनी रचनाएँ कीं। स्वतंत्रता आन्दोलन में हिन्दी पत्रकारिता ने महान भूमिका अदा की। राजा राममोहन राय, स्वामी दयानन्द सरस्वती, महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, सुब्रह्मण्य भारती आदि अनेकानेक लोगों ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने का सपना देखा था।
महात्मा गांधी ने 1917 में भरूच में गुजरात शैक्षिक सम्मेलन में अपने अध्यक्षीय भाषण में राष्ट्रभाषा की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा था कि भारतीय भाषाओं में केवल हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसे राष्ट्रभाषा के रूप में अपनाया जा सकता है क्योंकि यह अधिकांश भारतीयों द्वारा बोली जाती है; यह समस्त भारत में आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक सम्पर्क माध्यम के रूंप में प्रयोग के लिए सक्षम है तथा इसे सारे देश के लिए सीखना आवश्यक है।
डॉ.कृपा ने राष्ट्रभाषा के लक्षण पर भी प्रकाश डाला और ‘ राष्ट्रभाषा’ के निम्नलिखित लक्षण बताए
(१) प्रयोग करने वालों के लिए वह भाषा सरल होनी चाहिए।
(२) उस भाषा के द्वारा भारतवर्ष का आपसी धार्मिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवहार हो सकना चाहिए।
(३) यह जरूरी है कि भारतवर्ष के बहुत से लोग उस भाषा को बोलते हों।
(४) राष्ट्र के लिए वह भाषा आसान होनी चाहिए।
(५) उस भाषा का विचार करते समय किसी क्षणिक या अल्प स्थायी स्थिति पर जोर नहीं देना चाहिए।
भारत के सन्दर्भ में, इन लक्षणों पर हिन्दी भाषा बिल्कुल खरी उतरती है।
आगे अपने वक्तव्य को विस्तार देते हुए डॉ. कृपा ने कहा की हिन्दी दीर्घकाल से अखण्ड भारत में जन–जन के पारस्परिक सम्पर्क की भाषा रही है। भक्तिकाल में अनेक सन्त कवियों ने हिन्दी में साहित्य रचना की और लोगों का मार्गदर्शन किया। केवल उत्तरी भारत की नहीं, बल्कि दक्षिण भारत के आचार्यों वल्लभाचार्य, रामानुज, रामानन्द आदि ने भी इसी भाषा के माध्यम से अपने मतों का प्रचार किया था। अहिन्दी भाषी राज्यों के भक्त–सन्त कवियों (जैसे—असम के शंकरदेव, महाराष्ट्र के ज्ञानेश्वर व नामदेव (13वीं शताब्दी), गुजरात के नरसी मेहता, बंगाल के चैतन्य आदि) ने हिन्दी को ही अपने धर्म-प्रचार और साहित्य का माध्यम बनाया था। सिखों के पवित्र ग्रन्थ गुरु ग्रन्थ साहिब में अनेक सन्त कवियों के हिन्दी काव्य संगृहीत हैं। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि भूषण, छत्रपति शिवाजी के राजकवि थे। 1816 ई0 में विलियम केरी ने लिखा कि हिन्दी किसी एक प्रदेश की भाषा नहीं, बल्कि देश में सर्वत्र बोली जाने वाली भाषा है।
लेकिन आज तक हिंदी को हम हमारी राष्ट्रभाषा के तौर पर स्थापित नहीं कर पाए। हिंदी आज भी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है बल्कि राजभाषा है।
प्रोफेसर नसरीन बेगम, और डॉ. शबनम आरा ने भी अपने-अपने विचारों को प्रस्तुत किया। डॉ. जरीना बेगम ने धन्यवाद दिया।